Friday, March 07, 2008

आदमी बुलबुला है पानी का...

आदमी बुलबुला है पानी का...
और पानी कि बहती सतह पर तुटता भी है..डुबता भी है..
फिर उभरता है ..फ़िर से बहता है...
ना समंदर निगल सका इसको..
ना तारीख तोड पायी है...
वक्त की मौज पे सदा बहता...
आदमी बुलबुला है पानी का...

-- गुलजार साब

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